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हमारे पुरुष प्रधान समाज, जहां 21वीं सदी में महिला उत्थान के लिए नये-नये कार्य किये जा रहे हैं, वहीं महिलाओं द्वारा किये गए प्रयासों पर पानी फेरा जा रहा है। हाल ही मे महिला क्रिकेट वर्ल्ड कप में भारतीय महिला क्रिकेट टीम ने ऑस्टेलिया को हराकर फाइनल में प्रवेश किया, लेकिन इसकी खबर शायद ही किसी को हो। ठीक इसी के विपरीत अगर हमारी पुरुष क्रिकेट टीम वर्ल्ड कप खेल रही होती, तो फाइनल में पहुंचने से पहले ही कितना हो हल्ला और न जाने कितने हवन हो गये होते, टीम को उत्साहित करने की लिए।
ये सब इस पुरुष प्रधान समाज की सोच के अन्तर्गत हो रहा है। महिलाओं को ऊपर उठाने के लिए या फिर शायद दिखावे के लिए प्रयास तो किए जा रहे है, लेकिन जो सफलता उनको अपनी मेहनत से मिल रही है, उसको ना तो कहीं किसी प्रकार का सपोर्ट मिल रहा है और ना कहीं किसी प्रकार से सराहना होती दिखाई दे रही है, जो सरासर गलत है। महिला विकास का ढिंढोरा पीटने की बजाय वास्तव में इनके लिए कुछ करना चाहिए।
‘देखो मचा रहे हैं शोर, महिलाओ के विकास का
फर्क नहीं मालूम अंधेरे और प्रकाश का’।
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