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अतिक्रमण या उत्पीड़न

मेरी कलम से
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आजकल पीडबल्यूडी (PWD) दुवारा संचलित कथित अतिक्रमण हटाओ का जहाँ तहाँ शोर व अफरा तफरी मच रही है। नागरिक भयभीत व किकर्तव्य मिमूढ़ की दशा मे है किसी की समझ मै नहीं आ रहा है कि ये जो सरकारी कार्येक्रम चल रहा है ये सही हो रहा है या गलत हो रहा है। आम नागरिक ने तिनका-तिनका जोड़कर जो घोसला बनाया है,ठिकाना बनाया है या पेट पालने का एक जरिया खड़ा किया है उस पर ही अतिक्रमण का निशान लग गया अब वह करे तो क्या करे।

एक व्यक्ति बैनामा कराने के पश्चात जब कोई दुकान या मकान बनाने की सोचता है तब वह नक्शा बनवाकर नगरपंचायत या नगरपालिका जैसी सरकारी संस्था से अपने नक्शे को पास कराकर बेफिक्र हो जाता है कि हमारा काम पक्का हो गया है क्योकि नगरनिकाय भी सरकार का ही उपक्रम है। अगर मकान बनाने के लिए नगरपंचायत या नगरपालिका से नक्शा पास करना काफी नहीं है तो मकान बनाने की अनुमति नहीं देनी चाहिये बल्कि सूचित करना चाहिये कि इस नक्शे को पीडबल्यूडी विभाग से भी पास करना होगा जबकि अब तक ऐसा कोई प्रावधान नगरपंचायत या नगरपालिका ने नहीं बना रखा है, जबकि नगरपंचायत या नगरपालिका जलकर भवनकर जैसे टैक्स वसुल कर रही है घरो के बाहर नाले बनाकर बता रही है कि हद यहाँ तक है, कहने का आशय ये है जब एक विभाग अनुमति प्रदान कर रहा है तब दूसरा विभाग क्यो अडगे लगा रहा है वह भी इतने वर्षो बाद। अभी हाल ही स्थिति बेहतर ये है कि नक्शा पास करने से पहले हर विभाग की सन्तुष्टि करा दी जाय ताकि आम जनता का मानसिक और आर्थिक उत्पीड़न न हो।

गंदे पानी की निकासी के नालो के ऊपर या उनसे बाहर अगर किसी ने नाजायज टीन शेड डाल रखी है या स्थायी निर्माण कर रखा है उसे हटाने मे किसी को भी आपत्ति नहीं होनी चाहिए

संबन्धित आधिकारी को चाहिए कि “सबका नाश सबका विनाश” वाले आदेश को निरस्त कर दिया जाए ताकि लोकप्रिय प्रधानमंत्री जी का लोकप्रिय नारा सार्थक हो जाए——“सबका साथ सबका विकास”

अंजलि रूहेला

अम्बैहटा पीर

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